
पीड़ा सृजन की जननी है . बिना सूली चडे जिसुस नहीं बना जा सकता , बिन विषपान शिव नहीं हो सकता , बिना विषपान सुकरात, मीरा नहीं बन जा सकता . बिना त्याग बुध नहीं बना जा सकता. परीक्षा जरूरी है , बिना परीक्षा उतीर्ण नहीं हुआ जा सकता
कष्ट सब के मार्ग में आते है; जो जितना ऊँचा है वोह उतना गहरा है ; गहरे जाना उपर उठने का मार्ग है पीछे खिसकना आगे जाने की तैयारी है | आग से निकल कर ही सोना कुंदन बनता है | धन की कैद से निकल कर ही चावल महकता है | सच तो है की पीड़ा माध्यम है सृजन का सौंदोर्या का | स्त्री और प्रकृति गहरी पीड़ा और लम्बे धैर्य से गुजर कर ही सृजन करने में सक्षम होती है | गुलमोहर का वृक्ष धुप में छाँव देकर ही फूल प्राप्त करता है | छांव देना के लिए वृक्ष को धुप में खडा होना पड़ता है |
यदि वृक्ष धुप से नाता तोड़ ले तो छाँव कैसे देगा | इसका मतलब देने वाले को त्याग करना ही पड़ेगा | छाँव देने वाले को जलना होगा | मांझी को लहरों से टकराना होगा | रात जितनी गहरी सुबह उतनी ही करीब |
पीड़ा जननी है सौंदर्य की | फिर चाहे यह संघर्ष के रूप में हो, धैर्य के रूप में प्रितिक्षा हो या या श्रम \ अत्यधिक पीड़ा यानि अत्यधिक सुख | अत्यधिक प्रितिक्षा यानी गहरे से योशोधरा को जानना | फल मीठा होने से पहले कडवा और कसैला होता है | बिना अनुभव के ज्ञान कहाँ संभव है | बिना बोध के रूपांतरण नहीं होता | रूपांतरण के लिए घटना से गुजरना जरूरी है | मुश्किल आने पर ही उसका मुकाबला सिखा जाता है |
सबसे प्रिय वास्तु खोने के बाद अन्य बात दुःख नहीं पहुंचाती | बाद में तलिफें आणि बंद नहीं होती पर अब वोह प्रभाव नहीं डाल पाती क्यूंकि जो सर्वाधिक अहसनीय थी वोह हम झेल चुके हैं
सच यह है की जो मानव जीवन के लिए तकलीफें थी पीड़ा थी उसकी दुश्मन नहीं दोस्त बन कर आई | उनसे गुजर कर ही जीवन का सृजन हुआ | जीवन का सौंदोर्य खिला